भाग १६ — देव वंदना
प्रकाशित: 29 जुलाई 2025
प्रथम खंड
हिन्दी
जय जय श्री सीता राम
जय जय श्री सीता राम
जय जय श्री सीता राम
समस्त दिशाओं में जो बहते,
जीव जीवन में सहायक रहते।
आप बिन जीव जी ना पाये,
एक भी श्वास ले ना पाये।
गतियों में हो आप समाये
राम कारज में सदा सहाये
अदृश्य रह, करें उपकार,
पवन देव को बारम्बार प्रणाम।
बारम्बार प्रणाम
बारम्बार प्रणाम
स्पर्श मात्र से पावन करे - ज्वाला
यज्ञ को सम्पूर्ण करे - ज्वाला
अन्न खाने योग्य करे - ज्वाला
अंत समय देह शुद्ध करे - ज्वाला
उन अग्नि देव को वंदन करूँ
बारम्बार वंदन करूँ
त्रिपुरारी अभिषेक में काम आवे
जीव चराचर तृप्त हो जावे
जीवन बिना जल संभव ना होवे
नदियों में जो शोभा पावे
उन वरुण देव को वंदन करूँ
बारम्बार वंदन करूँ
जीव चराचर जिनमें समावे
गोद में उनकी आश्रय पावें
पापी-पुण्यी में रखे सम भाव,
देती अन्न, सहती दबाव।
धरती जननी को कोटि प्रणाम।
कोटि कोटि वंदन, कोटि कोटि प्रणाम
जहाँ न थमे गति का विस्तार,
न सीमित कोई दिशा-प्रहार।
ऐसे आकाश को करूँ प्रणाम।
कोटि कोटि वंदन, कोटि कोटि प्रणाम
जो रचें सृष्टि, धर्म बढ़ावें,
पालन में सह, पाप मिटावें।
संहार समय हों साथ प्रधान,
उन समस्त देवों को करूँ प्रणाम।
कोटि कोटि वंदन, कोटि कोटि प्रणाम
जय जय श्री सीता राम
जय जय श्री सीता राम
जय जय श्री सीता राम